Dr. Neelam

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एक उजली-सी साँझ वो ढलती हुई

नमन मंच

विषय--एक उजली-सी साँझ वो ढलती हुई

आज फिर बहके कदम
आ गये उसी जगहा पर
जहाँ से हम उठकर बिछड़े
थे,फिर न मिलेंगे कभी
ये सोचकर

था किनारा दरिया का
खामोश लहरों में भी
छिपा कहीं तुफान
हमारे भरे हुए जज्बातों-
सा था
बहुत चाहा,बहुत मनाया
दिलों को भी था
वक्त बुरा है गुजर जाएगा
समझाया भी था
मगर तुफान हमारे अहम का
दिलोदिमाग पर हावी था
तभी 
एक उजली-सी साँझ वो 
ढलती रही
और हमारे बीच दूरियां
बढ़ती रही

आज मगर यकबयक
कदम फिर उसी जगहा
साँझ के उजाले में मुझे ले
आए
बस इक उम्मीद पर
कि गुजरे तूफान बाद जो
सब साफ,निर्मल, पाक-पवित्र
हो जाता है
शायद मेरे दिल सा
तुम्हारा दिल भी उजला
हो राह मेरी तकता रहता
होगा ढलती उजली साँझ में
उसी दरिया किनारे
मगर...... मगर
दरिया के उजले जल में
एक उजली-सी साँझ वो ढलती रही
इंतजार में हम रहे
मगर वो साँझ फिर न आई।

          डा.नीलम

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5 Comments

Mohammed urooj khan

16-Apr-2024 11:35 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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kashish

12-Apr-2024 03:24 PM

Amazing

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Shnaya

11-Apr-2024 04:29 PM

V nice

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